सिरोही (राजस्थान)। आधुनिकता के बदलते इस नये परिप्रेक्ष्य ने मानव जीवन की दिनचर्या ही बदल दी है। वैज्ञानिक तकनीकि के नये नये साधन आने से किसान भी अपने पुराने साधनो को भूल गये है साथ ही उनके बैलांे की घंटियो की आवाज ही लूप्त हो गई है। जानकारी अनुसार भारत एक कृषि प्रधान देश है, भारत की अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है इस नये युग के चलते वैज्ञानिको ने किसानों के खेती में काम आने वाले नये नये साधन विकसित किये टेªक्टर ट्रोली हेरा कल्टी इत्यादी जिसके चलते किसान अपने पुराने साधनो को भूल चुकी है जिससे उनको काम मे जरूर इजाफा हुआ है मगर इसी साधनो ने उनके शरीर को भी कमजोर बना दिया है। वराडा देलदर मंडवारिया बरलूट जावाल व आसपास के ग्रामीणों नें बताया की खेतों या कुओं पर खोदाई कार्य करने के लिए हल जोतना पड़ता था एवं चारा पानी व अन्य सामान धोने के लिए बैल गाडीयों का सहारा लिया जाता था यहां तक की शादी-ब्याह में बारात भी बैलगाड़ी में बैठ कर जाती थी, एवं गावों में एक एक किसान के पास दो दो बैलों की जोड़िया रहती थी, वराडा गांव में 40-50 जोड़िया थी लेकिन आज मात्र 1-2 जोडी ही रह गई है वह भी इसलिए की इस मंहगाई के युग मे हर कोई टेªक्टर या ट्रोली नही खरिद सख्ता, मगर आज के युग मे बैल रखना भी मुश्किल पड रहा है निरतंर बैलो की कमी हो रही है। काश्तकार छोगाराम ने बताया कि पहले बैलों की पूजा की जाती थी उसके गर्दन में घुंघूरू बांधते थे व उनका पूरा पालन पोषण होता था। खेतो में काम करते वक्त उनके घुंघूरूओ की आवाज भी सबको मोहित कर देती थी मगर अब बैलो के साथ घंटियो की आवाज भी लुप्त हो गई है। आज गावों में या शहरों में इक्का-दुक्का ही बैलगाडियां देखने को मिलती हैं जिसे देखने को लोग दोड़ पड़ते हैं।
लेखक रमेश सुथार पेन्टर सिरोही (राजस्थान) के निवासी एवं पत्रकार हैं। Posted on- 19/05/11 rainbownews.in