समाज की मुख्य धारा से कटा हुआ है कालबेलिया नाथ समुदाय। स्थायित्व के अभाव मे इस समाज मे आज भी शिक्षा की बयार नही पहुच पाई है। दरअसल, कालबेलिया नाथ, जिन्हे सपेरा भी कहा जाता है। वे स्वतन्त्रता प्राप्ति के ६३ वर्ष बाद भी मुख्य धारा से नही जुड पाए है। यह एक खानाबदोश घुमन्तु जाति है। आज यहाँ, कल वहाँ। रेतीले धोरो पर सरकंडे के सहारे यह लोग शीत,धुप,वर्षा से अपने परिवार का लालन-पालन करते है। बीन बजाना,सांप दिखना ही इनका पुश्तैनी धंधा है। जिससे रोजी रोटी मिलती है। लेकिन फिल्म-टी.वी.ने इनके मुँह का निवाला छीन लिया है। अब इन्हे दर्शक ढुंढे से भी नही मिलते। इस समुदाय की औरते मिट्टी से बच्चो के खिलौने यथा घोडे,हाथी ,हाथ चक्की व अन्य खिलौने बेच कर अपना व अपने परिवार की परवरिश की जुगाड करती थी। बाजार मे मिलने वाले खिलौने ने यह रास्ता भी बंद कर दिया।
खा जाते हैं सांप
इस समुदाय के लोग आंखें तेज होने की अवधारणा के चलते सांप तक खा जाते हैं। वे सर्प के अग्र व पीछे वाला भाग शल्क हटाकर उबालकर खा जाते हैं
रिवाज कैसे-कैसे
इस समुदाय के रिवाज भी अजीबो-गरीब है । लडकी की शादी पर बाप दहेज के रूप मे उसे एक गधा,बकरी, शिकारी कुत्ता, सांप पुंगी देता है। अपेक्षाक्रत सम्पन्न पिता यह वस्तुँए दुगुनी प्रदान करता है।
किसिम किसिम के नाम
भारतीय संस्क्रति मे नाम परिवेशानुसार दिए जाते है। जिनका एक सार्थक अर्थ होता है। मसलन, गंगाप्रसाद, जमुनादेवी, सुर्यप्रकाश, चंद्रकांत, जगरूप, आलमनुर,रोशन आरा आदि चुंकि इस खानाबदोश समुदाय का दायरा सीमित है। इसीलिए इनके नाम भी इसी तरह के है। जैसे भूतनाथ, सांपनाथ, रूमालनाथ, पुंगीनाथ, गधानाथ आदि। गधानाथ नाम सुनने पर इस संवाददाता के हँसने पर समीप बैठे गधानाथ ने अपनी आस्तीन हटा कर हाथ पर गुदा गधानाथ पढवाया।
भील होते है ठाकुर
इस समुदाय के लिए भील समाज के लोग ठाकुर का दर्जा रखते है। यदि इस समाज की कोई पंचायती हो तो भील समुदाय का कोई भी व्यक्ति पंच की भुमिका अदा करता है। वह उन्हे पीट भी सकता है।
गुलाबो ने दिलाई अंतरराष्ट्रीय ख्याति
इस समुदय की बेमिसाल न्रत्यांगना गुलाबो ने नाथ काल बेलिया समाज को विश्व पटल पर बेहद मकबूलियत नवाजी। वह एक मशहूर नर्तकी है।
एक विडम्बना यह भी
यह एक विडमबना ही है कि इस समुदाय के कई नजर बांधने के कथित जादू के फेर मे भोले-भाले लोगो को ठग कर, पैसे, आभूषण दुगुने करने का झोसा दे कर लुट लेते है। चुन्नानाथ ने बताया कि यह रोजगार नही मिलने के कारण गलत करते है।
कनीपाव है आराध्य देव
इस समुदाय के कनीपाव आराध्य देव है। यह लोग मर जाएंगे, लेकिन कनीपाव की झूठी कसम नही खांएगे।
न अजा न अजजा
हैरत की बात यह कि कालबेलिया नाथ समुदाय न तो अजा है, न ही अजजा एवं न ही सामान्य।
खा जाते हैं सांप
इस समुदाय के लोग आंखें तेज होने की अवधारणा के चलते सांप तक खा जाते हैं। वे सर्प के अग्र व पीछे वाला भाग शल्क हटाकर उबालकर खा जाते हैं
रिवाज कैसे-कैसे
इस समुदाय के रिवाज भी अजीबो-गरीब है । लडकी की शादी पर बाप दहेज के रूप मे उसे एक गधा,बकरी, शिकारी कुत्ता, सांप पुंगी देता है। अपेक्षाक्रत सम्पन्न पिता यह वस्तुँए दुगुनी प्रदान करता है।
किसिम किसिम के नाम
भारतीय संस्क्रति मे नाम परिवेशानुसार दिए जाते है। जिनका एक सार्थक अर्थ होता है। मसलन, गंगाप्रसाद, जमुनादेवी, सुर्यप्रकाश, चंद्रकांत, जगरूप, आलमनुर,रोशन आरा आदि चुंकि इस खानाबदोश समुदाय का दायरा सीमित है। इसीलिए इनके नाम भी इसी तरह के है। जैसे भूतनाथ, सांपनाथ, रूमालनाथ, पुंगीनाथ, गधानाथ आदि। गधानाथ नाम सुनने पर इस संवाददाता के हँसने पर समीप बैठे गधानाथ ने अपनी आस्तीन हटा कर हाथ पर गुदा गधानाथ पढवाया।
भील होते है ठाकुर
इस समुदाय के लिए भील समाज के लोग ठाकुर का दर्जा रखते है। यदि इस समाज की कोई पंचायती हो तो भील समुदाय का कोई भी व्यक्ति पंच की भुमिका अदा करता है। वह उन्हे पीट भी सकता है।
गुलाबो ने दिलाई अंतरराष्ट्रीय ख्याति
इस समुदय की बेमिसाल न्रत्यांगना गुलाबो ने नाथ काल बेलिया समाज को विश्व पटल पर बेहद मकबूलियत नवाजी। वह एक मशहूर नर्तकी है।
एक विडम्बना यह भी
यह एक विडमबना ही है कि इस समुदाय के कई नजर बांधने के कथित जादू के फेर मे भोले-भाले लोगो को ठग कर, पैसे, आभूषण दुगुने करने का झोसा दे कर लुट लेते है। चुन्नानाथ ने बताया कि यह रोजगार नही मिलने के कारण गलत करते है।
कनीपाव है आराध्य देव
इस समुदाय के कनीपाव आराध्य देव है। यह लोग मर जाएंगे, लेकिन कनीपाव की झूठी कसम नही खांएगे।
न अजा न अजजा
हैरत की बात यह कि कालबेलिया नाथ समुदाय न तो अजा है, न ही अजजा एवं न ही सामान्य।
लेखक- रमेश सुथार, सिरोही (राजस्थान)
Posted on- 12/06/11 rainbownews.in/ teznews.com